
जालंधर ब्रीज: राज्यसभा सदस्य संत बलवीर सिंह सीचेवाल ने कामागाटा मारू जहाज़ को गुरु नानक जहाज़ के रूप में पहचान दिलाने और 23 जुलाई को हर साल राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के लिए राज्यसभा के उपाध्यक्ष को पत्र लिखा है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि आज से 111 साल पहले 23 जुलाई 1914 को गुरु नानक जहाज़ कनाडा से वापस भारत के लिए रवाना हुआ था। यह जहाज़ 29 सितंबर 1914 को कोलकाता के बजबज घाट पर पहुंचा था, जहां ब्रिटिश सरकार ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर जहाज़ के 19 यात्री शहीद कर दिए थे।
बाबा गुरदीत सिंह जी कामागाटा मारू जहाज़ के माध्यम से हांगकांग से वैंकूवर, कनाडा के लिए गए थे। यह जहाज़ 4 अप्रैल 1914 को हांगकांग से चला और 23 मई 1914 को कनाडा के वैंकूवर तट पर पहुंचा था, लेकिन वहां के अधिकारियों ने यात्रियों को उतारने की अनुमति नहीं दी, जबकि जहाज़ सभी शर्तों को पूरा कर रहा
था। दो महीने तक कनाडा के समुद्री तट पर खड़े रहने के बाद, 23 जुलाई 1914 को यह जहाज़ वापस कनाडा से रवाना हो गया था। बाबा गुरदीत सिंह जी ने यह जहाज़ कनाडा भेजने का फैसला इस लिए लिया था, क्योंकि कनाडा सरकार ने भारतीयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था।
संत सीचेवाल ने कहा कि वह जहाज़ जो इतिहास के पन्नों पर “कामागाटा मारू” के नाम से दर्ज है, वास्तव में उसका नाम ‘गुरु नानक जहाज़’ था। इस जहाज़ को ले जाने वाले गदर के सिख नेता बाबा गुरदीत सिंह जी ने गुरु नानक स्टीमशिप नाम की कंपनी बनाकर इसे रजिस्टर्ड कराया था। इस जहाज़ में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश भी किया जाता था और संगत शबद कीर्तन भी करती थी। इस जहाज़ में कुल 376 यात्री थे, जिनमें 340 सिख, 12 हिंदू और 24 मुस्लिम थे। जहाज़ की टिकटों पर इसका नाम ‘गुरु नानक जहाज़’ लिखा हुआ था।
बाबा गुरदीत सिंह जी द्वारा लिखी गई किताब “श्री गुरु नानक जहाज़ के मुसाफिरों की दर्दभरी कहानी” इस घटना का एक दुर्लभ दस्तावेज़ है। इसी तरह, इतिहासकार डॉ. गुरदेव सिंह सिद्धू द्वारा लिखी किताब “श्री गुरु नानक जहाज़ (कामागाटा मारू जहाज़: समकालीन वृत्तांत)” भी यह बताती है कि इस जहाज़ का नाम ‘गुरु नानक जहाज़’ था।
संत सीचेवाल ने पत्र के माध्यम से जोरदार मांग की कि इस जहाज़ को इतिहास के पन्नों पर ‘गुरु नानक जहाज़’ के नाम से ही याद किया जाए और इसके शहीदों को सम्मान देने के लिए संसद के राज्यसभा में प्रस्ताव पास किया जाए।
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