June 19, 2025

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पंजाब बायोडायवर्सिटी बोर्ड और पी.एस.सी.एस.टी. ने जैविक विभिन्नता के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया

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जालंधर ब्रीज: पंजाब जैविक विभिन्नता बोर्ड और पंजाब स्टेट कौंसिल फार साईंस एंड टेक्नोलोजी (पीएससीएसटी) ने संयुक्त रास्ट्र की तरफ से ‘हम समाधान का हिस्सा हैं – फार नेचर’ जैविक विभिन्नता के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस, 2021 की घोषणा की थी। राज्य के वातावरण के खतरे से जीव-जंतुओं का बचाव करने सम्बन्धी दो दिवसीय लैक्चर लड़ी का आयोजन किया गया जोकि 26 मई, 2021 को खत्म हुआ। वैब-लड़ी के दौरान प्रसिद्ध विज्ञानियों और वातावरण समर्थकों की तरफ से उभर रहे खोजकर्ताओं को लुप्त हो रहे जानवरों, महत्वपूर्ण चुनौतियों और बचाव पक्षों सम्बन्धी पहलकदमियों संबंधी ज्ञान देने के बारे प्लेटफार्म मुहैया करवाया गया और इसको खोजकर्ताओं, अकादमिकों और एन.जी.ओज से भरपूर समर्थन मिला।


पंजाब जैविक विभिन्नता बोर्ड के मैंबर सचिव -कम -कार्यकारी डायरैक्टर, पीएससीएसटी डा. जतिन्दर कौर अरोड़ा ने अपने उद्घाटनी भाषण के दौरान बताया कि पंजाब उन कुछ राज्यों में से एक है जहाँ जैविक विभिन्नता एक्ट, 2002 की धारा 22 के अंतर्गत जीव-वैज्ञानिक स्रोतों की संभाल और स्थिरता के लिए हर स्थानिक स्तर पर जैविक विभिन्नता प्रबंधन कमेटियों का गठन किया गया है। बोर्ड ने राज्य में बहाली/पुनर्वास की योजना शुरू करने के लिए एक्ट की धारा 38 के अधीन पंजाब की 13 प्रजातियों (8 फूल और 5 जानवर) को नोटीफायी भी किया है।


इस दौरान भारत सरकार के राष्ठªीय जैविक विभिन्नता अथारिटी के तकनीकी अधिकारी टी. नरेंदªन ने बताया कि जैविक विभिन्नता एक्ट, 2002 के अंतर्गत पहुँच और लाभ सांझा करने सम्बन्धी व्यवस्था शुरू करना जीव -वैज्ञानिक स्रोतों के स्थायी प्रयोग के मकसद हासिल करने के लिए एक शक्तिीशाली साधन हो सकता है।


पंजाब राज्य के एक इकवेटिक जीव सिंध दरिया की डौलफिन के बारे विचार विमर्श करते हुये डब्ल्य.ूडब्ल्यू.एफ.-इंडिया के इकवेटिक बायेडायवर्सिटी कोआरडीनेटर, गीतांजली कँवर ने कहा कि इस (आई.यू.सी.एन रैडलिस्टड) खत्म होती जा रही प्रजाति की एक छोटी सी आबादी सिर्फ ब्यास दरिया के एक खास हिस्से में मौजूद है। बताने योग्य है कि हाल ही में ब्यास दरिया को अंतर-राष्ट्रीय महत्व की रामसर साइट घोषित किया गया है। उन्होंने प्रभावशाली बहाली सम्बन्धी योजनाओं के तौर पर पानी की सर्वोत्त्म गुणवता बनाई रखने और सम्बन्धित कम्यूनिटियों को ‘ब्यास मित्र ‘ या ‘डौलफिन मित्र ‘ के तौर पर शामिल करने पर भी जोर दिया।


वातावरण की मौजूदा स्थिति और दुनिया के सबसे ऊँचा उड़ने वाले पक्षी सारस क्रेन के विलक्षण व्यवहार के बारे अपने संबोधन में डा. के. एस गोपी सुंदर, विज्ञानी -क्रेनज और वैटलैंडज, नेचर कंजरवेशन फाउंडेशन, मैसूर ने कहा कि क्रेन परिवार की 15 किस्मों में से 11 प्रजातियां खतरे में हैं। छोटे और दर्मियाने आकार के वैटलैंड क्षेत्र, जो इनके बचाव के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, बहुत तेजी से घटते जा रहे हैं। उन्होंने पौराणिक और सांस्कृतिक प्रमाण पेश किये जो मनुष्य के साथ इनके पवित्र रिश्तों और भाईचारक अस्तित्व को उजागर करते हैं।

वातावरण प्रणाली में सफाई पसंद जीवों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे बताते डा. विभु प्रकाश, उप -निर्देशक, कल्चर प्रोग्राम, बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बी.एन.एच.एस) ने गिद्धों के विलक्षण व्यवहार से श्रोताओं को अवगत करवाया, जिसमें मेल-मिलाप और पालन पोषण जैसे व्यवहार शामिल होते हैं। उन्होंने वलचर कनजरवेशन प्रोग्राम का नेतृत्व करते हुये गिद्धों की आबादी में अचानक गिरावट के कारण तलाशने, वैटरनरी ट्रीटमेंट में इस्तेमाल की जाती डाईकलोफेनाक दवा पर पाबंदी लगाने के लिए नोटीफिकेशन, तेजी के साथ घटती आबादी को बहाल करने के लिए प्रजनन की शुरूआत करने और तंदुरुस्त जनसंख्या को कुदरती आवासों में वापस भेजने सम्बन्धी मुद्दों पर अपने तजुर्बे सांझे किये।

फरैश वाटर टर्टल (कछुआ) की विभिन्नता और संभाल सम्बन्धी भाषण देते हुए भारत के टर्टल सरवाईवल अलायंस, सैंटर फार वाइल्ड लाईफ स्टड्डीज़ के प्रोग्राम डायरैक्टर डा शैलेंदर सिंह ने बताया कि कच्छुओं की विभिन्नता के मामलो में भारत तीसरा सबसे अमीर देश है और फरैश वाटर टर्टल की 24 प्रजातियों में से 8 किस्में पंजाब में पायी जाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आवासों की कमी और पालतू जीवों की गैर-कानूनी तस्करी फरैश वाटर टर्टलज के लिए बड़ा खतरा हैं और इस खत्म होती जा रही प्रजाति को बचाने के लिए आवास स्थान की बहाली, कम्युनिटी इनगेजमैंट और केंद्रित खोज प्रोग्रामों पर जोर दिया जा रहा है।

इंडियन रॉक पायथन सम्बन्धी अपने विचार साझे करते हुये वाइल्ड लाईफ रैसीक्यूयर और शहीद भगत सिंह नगर के आनरेरी वाइल्ड लाईफ वार्डन निखिल सेंगर ने कहा कि पठानकोट, होशियारपुर, नवांशहर और रोपड़ जिलों में फैला शिवालिक क्षेत्र पाईथन का कुदरती निवास है, जोकि इंडियन वाइल्ड लाईफ प्रोटैकशन एक्ट 1972 के शड्यूल 1 के अधीन है। जंगलों की कटाई, जलवायु परिवर्तन और जंगली जीवों के शिकार के कारण कई कम हो रही प्रजातियों पर चिंता जाहिर करते हुये निखिल सेंगर ने स्थानीय लोगों और विद्यार्थियों से सहयोग की अपील की और जागरूकता फैलाने के लिए ऐसी और पहलकदमियों की भी वकालत की।

जिक्रयोग्य है कि 300 से अधिक प्रतिभागियों ने वर्चुअल ढंग से प्रोग्राम में हिस्सा लिया और जैविक-विभिन्नता की संभाल के क्षेत्र में प्रशिक्षण और खोजकर्ताओं और विद्यार्थियों की शमूलियत सम्बन्धी पहलकदमी की सराहना की।


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