June 17, 2025

Jalandhar Breeze

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ई बी एस बी के अंतर्गत पंजाब पत्रकारों की आंध्र प्रदेश की यात्राएक भारत श्रेष्ठ भारत (ई बी एस बी) – विभिन्न राज्यों के लोगों के मध्य आपसी सम्पर्क और आपसी समझ को बढ़ावा देने का एक प्रयास

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जालंधर ब्रीज: विशाखापट्टनम ने स्वच्छता और एक बार प्रयुक्त होने वाली प्लास्टिक पर पाबंदी का एक उदाहरण पेश किया है।

जैसा कि कहा जाता हैं, ‘अच्छी शुरुआत से आधा कार्य संपन्न’, ठीक ऐसा ही तब हुआ जब पंजाब के 12 पत्रकारों और पीआईबी अधिकारियों का एक दल, उड़ान भरने के लिए चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर इकट्ठा हुआ। यहां से दल के सदस्य एक भारत श्रेष्ठ भारत के अंतर्गत पंजाब के जोड़ीदार (समन्वय) राज्य आंध्र प्रदेश के लिए रवाना हो रहे थे । इनमें से कुछेक एक-दूसरे को पहले से ही जानते थे, जबकि बाकी पहली बार मिल रहे थे।

अंजान लोगों के साथ, अज्ञात स्थान पर उड़ान भरते हुए आंध्र प्रदेश की संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन, विकास तथा उपलब्धियों के बारे में जानने की उत्सुकता हरेक के चेहरे पर दिखाई दे रही थी।

खुद को सभी ने ‘डेज़लिंग डर्ज़ेंस’ (चमकते हुए बारह लोग) के रूप में नामित किया। हवाई यात्रा के कम ही समय में सभी ने अच्छी तरह से समन्वय बना लिया। 31 अगस्त से चंडीगढ़ से आरंभ हुई यह आंध्रप्रदेश की सप्ताह भर की यात्रा की शुरुआत थी जो एक आशावादी दृष्टिकोण के साथ शुरू हुई और एक सकारात्मक भावना के साथ समाप्त हुई।

आंध्र प्रदेश के समुद्र तटों की आश्चर्यजनक सुंदरता और चारों ओर छाई हरियाली आत्मा को भावविभोर करने वाली थी। आंध्र प्रदेश पर्यटन विकास निगम( ए पी टी डी सी) के साथ समन्वय स्थापित कर विभिन्न स्थानों पर पारंपरिक भोजन, सुविधायुक्त रिसॉर्टस और आरामदायक परिवहन ने यात्रा के आनंद को और भी बढ़ा दिया था ।

पहली सितंबर को दौरे का पहला दिन, नियति के शहर विज़ाग या विशाखापत्तनम में उतरने के साथ शुरू हुआ। यह एक बंदरगाह शहर के रुप में भी लोकप्रिय है। पत्रकारों को नौसेना डॉकयार्ड पर लेकर जाया गया। जिसके लिए पीआरओ रक्षा प्रकोष्ठ, विशाखापत्तनम ने सहयोग किया । दल में शामिल अधिकांश पत्रकारों के लिए यह किसी भी डॉकयार्ड की पहली यात्रा थी। उन्हें पूरे डॉकयार्ड पर घुमाया गया और दिखाया गया कि कैसे बड़ी संख्या में कार्यबल भारतीय नौसेना के जहाजों की मुरम्मत और रखरखाव यहां करता हैं। मीडिया के सदस्यों को एक युद्धपोत के बारे में
भी पूरी जानकारी दी गई और यह भी बताया गया कि किसी भी संकट के दौरान युद्धपोत किस प्रकार से काम करते हैं। ‘हर काम, देश के नाम’ के आदर्श वाक्य पर चलते हुए, विशाखापत्तनम नेवल डॉकयार्ड ने हाल ही में अपनी स्वर्ण जयंती मनाई है । यह डॉकयार्ड ‘आत्मनिर्भरता’ पर केंद्रित है।

इस यात्रा के बाद विशाखापत्तनम की मेयर गोलागनी हरि वेंकट कुमारी और ग्रेटर विशाखापत्तनम नगर निगम (जीवीएमसी) आयुक्त जी. लक्ष्मीषा के साथ मुलाकात की गई। स्वच्छ भारत मिशन के तहत इन्होंने शहर को सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । जिसमें जनता ने भी पूर्ण घनिष्ठता के साथ सहयोग दिया है । कमिश्नर ने बताया कि नागरिकों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करने से पहले जीवीएमसी में ही प्लास्टिक के उपयोग पर पाबंदी लगा दी गई थी। स्वच्छ भारत सर्वेक्षण – 2022 के लिए सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने के क्षेत्र में जीवीएमसी देश का दूसरा निगम है।

विशाखापट्टनम ने आम लोगों के सहयोग से स्वच्छता और एक बार प्रयुक्त होने वाली प्लास्टिक पर पाबंदी का एक उदाहरण पेश किया है। पंजाब और अन्य राज्य इस शहर से मार्गदर्शन ले सकते हैं कि किस प्रकार से आम जनता के सहयोग के साथ अपने स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत शहर को साफ और सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त बनाया जा सकता हैं।

इसने स्वच्छ सर्वेक्षण -2020 की राष्ट्रीय स्तर की रैंकिंग में पहले ही 9 वां स्थान हासिल किया हुआ है। जीवीएमसी को 2021 में स्वच्छ भारत मिशन और स्वच्छ सर्वेक्षण आकलन के तहत आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा “वाटर प्लस” शहर भी घोषित किया गया था।
जीवीएमसी आयुक्त जी. लक्ष्मीषा द्वारा जो लीक से हट कर पत्रकारों के लिए दोपहर के भोजन की मेजबानी की गई और बाद में उन्हें सम्मानित किया, एक प्रशंसनीय कदम था जिसकी सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की।

उसी रात, अराकू के हरिथा वैली रिज़ॉर्ट में रहना बहुत मनोरंजक तथा स्मरणीय रहा । पत्रकारों को आदिवासी संस्कृति को समझाने के लिए विशेष रूप से आदिवासी नृत्य (डिम्सा) का आयोजन किया गया। अगली सुबह पडेरू जाने के लिए विश्राम से पहले, दल में शामिल महिला पत्रकार सहित सभी सदस्यों ने आदिवासी नृत्य मैं सक्रियता से भाग लेकर अपने दिन भर की थकान से छुटकारा पाने का प्रयास किया ।

पडेरू, एक छोटा पहाड़ी शहर व एक अनुसूचित क्षेत्र है जिसकी कुल जनसंख्या 56969 है (2011 की जनगणना के अनुसार)। इनमें ज़्यादातर लोग आदिवासी हैं। यह शहर मिनिमुलुरु सर्कल में कॉफी (Coffee) बागानों के लिए भी प्रसिद्ध है। ‘मनरेगा’ यहां के लोगों को आजीविका कमाने में मदद कर रहा है। आदिवासी आबादी की जरूरतों का ख्याल रखते हुए एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी (आईटीडीए) के परियोजना अधिकारी गोपाल कृष्ण रोनांकी ने कहा कि “मनरेगा यहां रहने वाले लोगों को आजीविका देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है”। आदिवासियों को उनके आवास में बेहतर जीवन स्तर प्रदान करने के लिए आईटीडीए की ओर से कई विकासात्मक परियोजनाएं चलाई जा रही है।

यहां दिलचस्प बात यह थी कि आईटीडीए कार्यालय कैंटीन आदिवासी महिलाओं द्वारा चलाई जा रही है। यहां पत्रकारों के लिए जो पारंपरिक भोजन पकाया और परोसा गया था उसकी किसी भी अच्छे होटल के स्वाद के साथ तुलना नहीं की जा सकती। बिरयानी, सब्जी, दाल, चटनी का स्वाद तथा मन को लालायित करने वाली महक भूख को और भी बढ़ा रही थी। आदिवासी महिला मालिकों ने अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ सभी को भोजन परोसा और अपने साथ तस्वीरें खिंचवाने के लिए अनुरोध किया।

इस दौरान, अराकू से चलते समय पडेरू के रास्ते में जनजातीय संग्रहालय और कॉफी संग्रहालय पत्रकारों के दल के लिए अचंभित करने वाली स्मृतियां लेकर आया । जहां जनजातीय संग्रहालय ने आदिवासी आबादी के जीवन स्तर,खाने की आदतों और संस्कृति पर प्रकाश डाला , वहीं कॉफी संग्रहालय की यात्रा के दौरान यह जानने का समृद्ध अनुभव मिला कि कॉफी बीन्स कैसे मिलीं थीं? विभिन्न प्रकार की कॉफी की सुगंध हर एक को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी, जिससे आगंतुक के मन में आगे बढ़ने से पहले कम से कम एक कप कॉफी का स्वाद चखने की लालसा पैदा हो रही थी।

यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कॉफी बीन्स की खोज वास्तव में बकरियों ने की थी। इथियोपियन लीजेंड के अनुसार,कलदी नाम के एक बकरी चराने वाले ने सबसे पहले कॉफी बीन्स व उसकी क्षमताओं की खोज की थी । कहानी कुछ ऐसी है कि कलदी ने कॉफी की खोज तब की जब उन्होंने देखा कि एक निश्चित पेड़ से फल खाने के बाद, उनकी बकरियां इतनी ऊर्जावान हो गईं कि वे रात को सोना नहीं चाह रहीं थीं। कॉफी के इतिहास को विभिन्न चित्रों, कैरिकेचर और लेखन के माध्यम से संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।

हमारी अगली रात का पड़ाव हरिथा कोकोनट कंट्री रिज़ॉर्ट, डिंडी में था। गोदावरी नदी के सामने के महलनुमा कमरे अपने आप में अतुलनीय थे। हालांकि हम देर रात पहुंचे लेकिन गोदावरी में अद्भुत सूर्योदय के कारण सुबह का समय आंखों को सुकून देने वाला था। नाश्ता करने के बाद, हम आंध्र प्रदेश पर्यटन विकास निगम के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत करने के लिए विजयवाड़ा चले गए। एपीटीडीसी के अधिकारियों ने पत्रकारों को पर्यटन के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करने के लिए शुरू की गई विभिन्न विकास परियोजनाओं के बारे में अवगत करवाया पर इससे पूर्व
दोपहर के एक भव्य भोजन के साथ दल के सदस्यों का स्वागत किया।

इसके तुरंत बाद, समूह के सदस्य कोंडापल्ली गांव में चले गए। यह स्थान विश्व प्रसिद्ध, जीआई टैगेड कोंडापल्ली खिलौनों के लिए जाना जाता है, जो तेलपोंकी पेड़ की लकड़ी से बने होते हैं। यह पेड़ इसी गांव में पाए जाते हैं। यहां पर अधिकांश परिवार पिछले 400 साल से इन खिलौनों को बनाकर अपनी आजीविका कमा रहे हैं। एक राज्य पुरस्कार विजेता कारीगर के. वेंकटचारी और उनकी पत्नी ज्योति इन खिलौनों को विभिन्न सामाजिक विषयों पर आधारित कर के बनाते हैं। वेंकटचारी ने कहा कि परिवार बिना किसी मशीनरी का उपयोग किए इन खिलौनों को हाथों से बनाने के लिए सब कुछ कर रहे हैं। उनकी बेटी भार्गवी, जो इंजीनियरिंग की छात्रा है, भी पारिवारिक व्यवसाय से जुड़ी है।

कोंडापल्ली गांव से अगला पड़ाव 14वीं सदी का कोंडापल्ली किला था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) किले का रखरखाव कर रहा है और किले को संवर्धित वास्तविकता प्रौद्योगिकी ( augmented reality technology ) से सुसज्जित किया गया है। आगंतुकों के लिए ‘कोंडापल्ली ऐप’ डाउनलोड करना आवश्यक है जिसके लिए एएसआई ने ओपन वाई-फाई प्रदान किया है। ऐप आगंतुकों को वहां प्रदर्शित सभी मूर्तियों, तस्वीरों आदि के बारे में जानने में मदद
करता है क्योंकि जैसे ही आगंतुक इसे ऐप के साथ स्कैन करता है, वे अपने बारे में बात करना शुरू कर देते हैं। यह अत्याधुनिक तकनीक का एक ऐसा उदाहरण है जो प्राचीन वस्तुओं को दुनिया को यह बताने में मदद करता है कि वे कौन थे? और समय बीतने के साथ उनके साथ क्या हुआ?

यात्रा के पांचवें दिन 4 सितंबर की सुबह जल्दी नागार्जुन सागर बांध पर जाने से पहले रात में ठहरने के लिए बरम पार्क रिज़ॉर्ट अगला पड़ाव था। सभी पत्रकार, पूर्व समन्वय कायम कर बांध में नौका विहार का आनंद लेने के लिए जल्दी उठ गए। हम बौद्ध सर्किट नागार्जुनकोंडा संग्रहालय जाने वाले पहले स्टीमर में सवार होने के लिए समय पर पहुँच गए थे। करीब 40 मिनट की बोटिंग के बाद हम म्यूजियम पहुंचे। संग्रहालय में बुद्ध के जीवन काल को- जन्म से

लेकर महापरिनिर्वाण तक के सफर को मूर्तियों , पत्थर के स्लैब पर उत्कीर्णन के अतिरिक्त एहुवाला चमटामुला काल के 16 वें वर्ष के ब्राह्मी लिपि के माध्यम से समझाने के लिए प्रदर्शित किया गया है।

दल के सभी सदस्यों के लिए पूरा दिन मनोरंजक रहा क्योंकि समूह ने एथिपोटाला झरने का भी दौरा किया। हालांकि, पिछले तीन दिनों में कई तरह की बातचीत/ जानकारियां और सुबह के भाग- दौड़ से थककर, हम सभी कोठापट्टनम सीशोर रिज़ॉर्ट में वापस आ गए। यह वह स्थान था जो मछुआरा समुदाय से भरा हुआ था। यह ठीक समुद्र के किनारे था। यहां रहना शहरी या ग्रामीण इलाकों में रहने से बिल्कुल अलग तरह का अनुभव था। रात के समय जहां समुद्र की
लहरें शोर कर रही थी, वही भव्य मंत्रमुग्ध करने वाले सूर्योदय ने सुबह के समय सभी को पूर्णतया अचंभित कर दिया ।

यात्रा के 5वें दिन की सुबह एक सुस्त दिनचर्या के साथ शुरू हुई क्योंकि दल के सदस्यों को केवल एक, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण स्थान पर ही जाना था। यह स्थान था श्री सिटी जोकि एक विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। वहां पहुंचने के तुरंत बाद, पत्रकारों के साथ पीआरओ रवींद्रनाथ और एजीएम (विपणन) हरि द्वारा जानकारी सांझा की गई। उन्होंने श्री सिटी के बारे में विस्तार से बताया कि किस प्रकार से यहां भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत विभिन्न ब्रांडों की विभिन्न विनिर्माण इकाइयों को प्रोत्साहित किया जा रहा है । यहां पर महिलाओं के सशक्तिकरण का एक अलग उदाहरण मिलता है। श्री सिटी में कुछ बाहरी इलाकों के साथ आसपास के गांव से कुल 50000 नियोजित श्रमिक काम कर रहे हैं जिनमे से आधी संख्या (25,000) महिला श्रमिकों की है। इस तरह श्री सिट ने न केवल ग्रामीणों को अच्छी आजीविका कमाने के मौके दिए हैं बल्कि उनके जीवन स्तर को भी ऊंचा किया है।

श्रीकालहस्ती, एक पवित्र शहर, रात के ठहरने का अंतिम पड़ाव था। एपीटीडीसी ने एक बार फिर से विशेष रूप से अनुकूलित पारंपरिक नाश्ता और दोपहर का भोजन परोसा, जिसके स्वाद, पौष्टिकता व स्टॉफ के प्यार व आदर सम्मान को कोई भी, कभी भी नहीं भूल पाएगा।

टाइम्स ऑफ इंडिया के सहायक संपादक, आईपी सिंह ने बताया कि, “आंध्र प्रदेश की यात्रा एक अच्छा और कुछ नया सिखने वाला अनुभव रहा । चूंकि आंध्रप्रदेश के व्यंजनों का स्वाद पंजाब के व्यंजनों से बिल्कुल अलग है, इसलिए अलग-अलग जगहों को देखने, राज्य और उसके लोगों को जानने के अतिरिक्त राज्य का जनजातीय भोजन करना एक चिर स्मरणीय अनुभव था। वैसे तो पंजाब में भी दक्षिण भारतीय खाना मिलता है, लेकिन इसे उस जगह पर खाना, जहां इसे नियमित रूप से पकाया जाता हो, जहां वह अपनी मौलिकता को बरकरार रखता हो, का आनंद उठाना
एक अलग अनुभव होता है। पहले रात्रि भोज से लेकर पडेरू में आदिवासी महिलाओं द्वारा तैयार भोजन तक, कुछ जगहों पर फिल्टर कॉफी से लेकर श्रीकलाहस्ती के एपीटीडीसी होटल में बड़े आतिथ्य के साथ परोसे जाने वाले ‘पार्टिंग लंच’ तक, सभी एक विलक्षण और अलग तरह के अनुभव थे। “

तिरुपति हवाई अड्डे पर जाने से पहले, हम सभी ने प्राचीन कालहस्ती मंदिर में पूजा-अर्चना की। गर्भगृह में समय गुजारते हुए हम सभी ने जिस आंतरिक शांति को महसूस किया, उसे शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता । सैकड़ों साल पुराने मंदिर की वास्तुकला आधुनिक समय के किसी भी इंजीनियरिंग चमत्कार से बिल्कुल अलग व विलक्षण है।

दल का प्रत्येक सदस्य अपने साथ नहीं नई जानकारियां, जागरूकता और तुलनात्मक अध्ययन और एक भारत श्रेष्ठ भारत की सच्ची भावना को संजोए हुए, विभिन्न व्यंजनों और संस्कृति के स्वाद से ओतप्रोत अपने मूल स्थानों पर लौटने के लिए हवाई अड्डे पर पहुंच कर हवाई जहाज में सवार होने की ओर बढ़ चले । हम सब ‘डेज़लिंग डर्ज़ेंस’ (चमकते हुए बारह लोग) तीन हवाई जहाजों और दो अलग-अलग राज्यों को बदलकर किस तरह वापस चंडीगढ़ एयरपोर्ट पहुंचे, यह कहानी फिर कभी ……

(राजेश बाली, फील्ड प्रचार अधिकारी, केंद्रीय संचार ब्यूरो, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार।)


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