
वस्त्र राज्य मंत्री पबित्रा मार्गेरिटा द्वारा 11वें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर लिखा गया लेख
जालंधर ब्रीज: हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस एक ऐसे क्षण का प्रतीक है जो भारत के अतीत को उसके भविष्य से धागे-दर-धागा, कहानी-दर-कहानी जोड़ता है। यह दिन 1905 के स्वदेशी आंदोलन का स्मरण कराता है, जब हाथ से बुना कपड़ा न केवल एक वस्त्र के रूप में, बल्कि प्रतिरोध, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पहचान के एक सशक्त प्रतीक के रूप में उभरा। एक नई शुरुआत के रूप में प्रारंभ हुआ यह प्रतीक विरासत, कला और सामुदायिक अभिव्यक्ति के ताने-बाने में बदल गया।
हथकरघा क्षेत्र आज ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत में 35 लाख से अधिक बुनकरों और संबद्ध श्रमिकों को रोजगार देता है, जिनमें से 72% महिलाएँ हैं। अपनी समृद्धि के कारण, यह क्षेत्र अब एक ऐसे दौर में खड़ा है, जहाँ इसे बिना किसी कमी के नवाचार, बिना किसी अभाव के तकनीक और बिना किसी हाशिए के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है।
एक स्थायी विरासत
भारत में हथकरघा बुनाई की समृद्ध विरासत हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की प्राचीन सभ्यताओं से जुड़ी है। सहस्राब्दियों से, यह शिल्प फलता-फूलता रहा है और प्रत्येक क्षेत्र ने बुनाई, विशिष्ट तकनीकों, रूपांकनों और अर्थों का अपना तौर-तरीका विकसित किया है। असम के मुगा रेशम की सुनहरी चमक से लेकर प्रसिद्ध बनारसी रेशमी साड़ियों तक; कश्मीर की पश्मीना से लेकर तमिलनाडु की चमकदार कांजीवरम साड़ियों तक, भारत की हथकरघा परंपराएँ उतनी ही विविध हैं, जितने इसके लोग।
एक बुनकर के घर में, जहाँ करघा अक्सर रसोई या एक तरफ के “आँगन” के साथ जगह साझा करता है, प्रत्येक साड़ी या शॉल एक अनोखी कथा को संप्रेषित करने के लिए तैयार की जाती है। न्यूनतम तकनीक, लेकिन अधिकतम रचनात्मकता के साथ, बुनकर धागों को विरासत में बदल देते हैं। बिना सिले हुए कपड़े, जो भारतीय परिधानों के प्रतीक हैं, क्षेत्रीय अभिव्यक्ति, अनुष्ठानों और कहानी कहने के कैनवास बन गए हैं। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के शब्दों में, “हथकरघा भारत की विविधता और अनगिनत बुनकरों व कारीगरों की कुशलता को दर्शाता है।”
पूर्वोत्तर: अवसरों का एक करघा
देश के कुल हथकरघा श्रमिकों में से लगभग 52% पूर्वोत्तर क्षेत्र में निवास करते हैं और 2019-20 की हथकरघा जनगणना के अनुसार, असम 12.83 लाख से अधिक बुनकरों और 12.46 लाख करघों के साथ देश में अग्रणी है। “असम का मैनचेस्टर” कहा जाने वाला सुआलकुची, पारंपरिक बुनाई उत्कृष्टता का प्रमाण है, जबकि धेमाजी जिले में मचखोवा जैसे विकासशील केंद्र इस क्षेत्र को और बढ़ावा देते हैं।
इसके सांस्कृतिक महत्व को समझते हुए, पूर्वोत्तर के लिए सरकार का समर्पित मिशन आदिवासी बुनाई को बढ़ावा देने, हथकरघा पर्यटन को प्रोत्साहित करने, निर्यात को सुविधाजनक बनाने और युवाओं को प्रशिक्षित करने पर केंद्रित है। इस क्षेत्र को एक वैश्विक डिज़ाइन केंद्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है, जहाँ प्राकृतिक रेशे, प्राचीन ज्ञान और आधुनिक उद्यमिता का संगम होता है। राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) के अंतर्गत, पूर्वोत्तर राज्यों के 123 छोटे समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई है। शिवसागर में एक बड़ा हथकरघा समूह स्थापित किया गया है तथा इम्फाल पूर्व और सुआलकुची में ऐसी दो परियोजनाएँ चल रही हैं। इस क्षेत्र में लगभग 3.08 लाख बुनकरों ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) के अंतर्गत सार्वभौमिक एवं किफायती सामाजिक सुरक्षा के लिए नामांकन कराया है, जिनमें असम के 1.09 लाख बुनकर शामिल हैं।
पुनरुद्धार से पुनरुत्थान तक
पिछले 11 वर्षों में, वस्त्र मंत्रालय के कई विशिष्ट कार्यक्रमों के जरिये भारत के हथकरघा उद्योग में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। समूह विकास पहलों, आधुनिक उपकरणों और ऋण तक पहुँच ने बुनाई को घरेलू गतिविधियों से सूक्ष्म उद्यमों में बदलने में मदद की है।
राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) और कच्चा माल आपूर्ति योजना (आरएमएसएस) ने सूत की आपूर्ति, करघा उन्नयन, कार्य शेड निर्माण से लेकर आधुनिक उपकरणों तक पहुँच प्रदान करके शुरू-से-अंत तक सहायता सुनिश्चित की है। पीएमजेजेबीवाई और पीएमएसबीवाई जैसी योजनाओं से अत्यंत आवश्यक वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा मिली है। बुनकरों की मुद्रा योजना के तहत रियायती ऋण और अतिरिक्त राशि (मार्जिन मनी) सहायता ने कार्यशील पूंजी तक पहुँच का विस्तार किया है।
बुनकरों और उद्यमियों के लिए लागत कम करने और उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से, उच्च क्षमता वाले क्षेत्रों में हथकरघा पार्क स्थापित करने की योजना है। इन एकीकृत स्थानों में रंगाई इकाइयाँ, तुरंत शुरू करने योग्य (प्लग-एंड-प्ले) कार्यशालाएँ, डिजिटल प्रयोगशालाएँ, शोरूम तथा सौर ऊर्जा एवं अपशिष्ट पुनर्चक्रण जैसी सतत संरचनाएँ शामिल होंगी।
साथ ही, निफ्ट, एनआईडी और अन्य डिज़ाइन संस्थानों के साथ साझेदारी में क्षेत्रीय स्तर पर डिज़ाइन और नवाचार केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, जहाँ डिज़ाइनर और बुनकर बुनाई के पारंपरिक सार का सह-निर्माण, संरक्षण और दस्तावेज़ीकरण करेंगे, और सांस्कृतिक डिज़ाइनों का ऑनलाइन संग्रह तैयार करेंगे। ये अभिनव कार्यक्रम वैश्विक स्तर पर भारतीय हथकरघा के सौंदर्य और व्यावसायिक आकर्षण, दोनों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
तकनीक को अपनाना ज़रूरी है, लेकिन हथकरघा की आत्मा अक्षुण्ण रहनी चाहिए। अब एआई का उपयोग रुझानों की भविष्यवाणी और डिजिटल रंग चयन के लिए किया जा रहा है, जबकि ब्लॉकचेन उत्पाद का पता लगाना सुनिश्चित करता है और जालसाजी का मुकाबला करते हुए इस क्षेत्र को नए डिजिटल युग में ज़िम्मेदारी से आगे बढ़ाता है।
संयोजन की पुनर्कल्पना: ई-कॉमर्स और बाज़ार पहुँच
विपणन और ई-कॉमर्स गेम-चेंजर के रूप में कार्य करेंगे। रणनीति सरल लेकिन क्रांतिकारी है: बिचौलियों को खत्म करना, प्रचार के माध्यम से उपस्थिति बढ़ाना और बुनकरों को प्रारंभ से ही मंचों, प्रदर्शनियों और बाज़ारों से सीधे जोड़ना। इसी क्रम में, हथकरघा बुनकरों को सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) से जोड़ा जा रहा है और indiahandmade.com एक पारदर्शी, शून्य कमीशन वाला मंच प्रदान कर रहा है, जो उचित पारिश्रमिक, वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने की निःशुल्क व्यवस्था, आसान वापसी और सुरक्षित भुगतान विकल्प सुनिश्चित करता है।
इन प्रयासों के पूरक के रूप में, 106 हथकरघा उत्पादों को पहले ही भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्रदान किए जा चुके हैं, जो उनकी अनूठी क्षेत्रीय विरासत और शिल्प कौशल का सम्मान करते हैं। ‘हथकरघा चिह्न’ और ‘भारतीय हथकरघा ब्रांड’ के साथ, ये उपाय हाथ से बुने हुए उत्पादों की विशिष्ट पहचान को मज़बूत करते हैं, और खरीदारों को उनकी प्रामाणिकता, गुणवत्ता और पर्यावरण-अनुकूलता का आश्वासन देते हैं।
कौशल, सुरक्षा और स्थायित्व
आने वाला कल समावेशी क्षमता निर्माण पर निर्भर करता है। विशेष रूप से पारंपरिक तकनीकों के संरक्षण की दृष्टि से युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम, वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के साथ जोड़े गए हैं – जिनमें स्वास्थ्य बीमा, शैक्षिक छात्रवृत्ति और बुनकरों के लिए पेंशन लाभ शामिल हैं।
साथ ही, पर्यावरण-अनुकूल रंग, कार्बन उत्सर्जन न करने वाले उत्पादन मॉडल और जीवन-चक्र मूल्यांकन इस क्षेत्र की स्थायित्व के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करते हैं, और भारतीय हथकरघा को वैश्विक हरित आंदोलन के साथ जोड़ते हैं। वस्त्र मंत्रालय के सहयोग से आईआईटी दिल्ली द्वारा तैयार की गई “भारतीय हथकरघा क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन आकलन: विधियाँ और केस स्टडीज़” शीर्षक वाली नई रिपोर्ट, एक संदर्भ और मार्गदर्शिका दोनों का काम करती है, जो भारत के लिए अधिक स्थायी संस्करण का मार्ग प्रशस्त करती है। पारंपरिक हथकरघा प्रथाओं में पर्यावरणीय चेतना को समाहित करके, यह अध्ययन सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के प्रति वस्त्र मंत्रालय की प्रतिबद्धता को पुष्ट करता है। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि हथकरघा मूल्य श्रृंखला न केवल जलवायु-सहनीय हो, बल्कि नैतिक उत्पादन, समान मजदूरी और सम्मानजनक आजीविका पर भी आधारित हो।
भविष्य का मार्ग: सतत, समर्थन, पैमाना
भारत के हथकरघा क्षेत्र का दृष्टिकोण आंशिक रूप से सांस्कृतिक, आंशिक रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित और पूरी तरह से मानवीय है। महत्वाकांक्षी लक्ष्यों में निर्यात में वृद्धि, नए रोजगार सृजित करना और विभिन्न समूहों के बुनकरों को डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है। भविष्य तीन स्तंभों पर टिका है: आत्मा को बनाए रखना, निर्माता का समर्थन करना और पहुँच का विस्तार करना।
पारिश्रमिक से आगे बढ़ते हुए, इस क्षेत्र का उद्देश्य फेलोशिप, स्टार्टअप अनुदान और इनक्यूबेशन केंद्रों के माध्यम से उद्यमिता को बढ़ावा देना है तथा विशेष रूप से अग्रणी युवाओं और महिलाओं को प्रोत्साहित करना है। ब्रांडिंग, मार्गदर्शन व सहायता और व्यवसाय विकास सहायता स्वामित्व-आधारित उद्यमों को बढ़ावा देगी, जो सांस्कृतिक रूप से प्रामाणिक और व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक दोनों होंगे।
भारत का हथकरघा क्षेत्र निरंतर विकसित हो रहा है…
हथकरघा 2047 तक विकसित भारत की ओर हमारी यात्रा में एक प्रमुख प्रेरक शक्ति बना हुआ है, साथ ही देश के सांस्कृतिक लोकाचार को संरक्षित कर रहा है और स्थायित्व एवं विवेकपूर्ण उपभोग को बढ़ावा दे रहा है। प्रतिरोध के एक साधन से नवाचार के एक प्रकाश स्तंभ तक की यात्रा, हथकरघा के कालातीत महत्व को दर्शाती है, जो आने वाले युगों में एक शाश्वत छाप छोड़ती है। विरासत, नवाचार और सामूहिक प्रयास को एक साथ बुनकर, भारत का हथकरघा क्षेत्र दुनिया को प्रेरित करने और देश में लाखों लोगों को सशक्त बनाने के लिए तैयार है। जैसा कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने परिकल्पना की है, “आइए हम हथकरघा को अपने दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाएँ और अपने पारंपरिक हथकरघा उत्पादों को वह दर्जा दें, जिसके वे हकदार हैं।”
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