June 17, 2025

Jalandhar Breeze

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12 अगस्त बरसी पर विशेष,ग़दरी बाबा शहीद बन्ता सिंह संघवाल

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जालंधर ब्रीज: ग़दर पार्टी लहर हिन्दोस्तान की सबसे पहली धर्म-निरपेक्ष कौमी इनकलाबी लहर थी, जिसने पंचायती कौमी राज्य का लक्ष्य स्पष्ट रूप में अपनाया था ।

ग़दर पार्टी लहर की विचारधारा को मुखरित करने वाले तथा कौम शक्ति संघर्ष में फांसी का फंदा चूम कर गले में डालने वालों में ग़दरी शहीद स. बन्ता सिंह संघवाल का नाम सुनहिरी अक्षरों में लिखा गया ।
गदर पार्टी ने राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संघर्ष के लिए भिन्न-भिन्न प्रदेशों से 50 होनहार विद्यार्थी चुनने के लिए जब अमरीका से अपना प्रतिनिधि भेजा तो स. बन्ता सिंह उस दल के महत्त्वपूर्ण सदस्य बने ।

उन्होंने ग़दर गूंज’ बांट कर तथा अपने सम्बोधनों द्वारा लोगों में देश प्रेम का संचार किया। दिन-रात एक करके उन्होने लोगों का रुझान आज़ादी के लक्ष्य की ओर मोड़ा, जो अपने आप में एक मिसाल है। उन्होंने अपनी जान हथेली पर रख कर अंग्रेज़ सरकार के नाक में दम कर दिया और लोगों के मन में अंग्रेज़ी हकूमत के विरुद्ध ऐसा ज़हर भरा कि उन्होंने आजादी प्राप्त करने के लिए कमर कस ली।

उनके द्वारा भरा हुआ जज्बा आज़ादी के संघर्ष के लिए बड़ा कारगर सिद्ध हुआ । यह स. बन्ता सिंह संघवाल की बहुत बड़ी देन थी ।
स. बन्ता सिंह संघवाल को ग़दर पार्टी के दोआबा क्षेत्र का कमांडर बनाया गया । इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप संघवाल देशभक्तों का प्रमुख केन्द्र बन गया। उनके घर मे रास बिहारी बोस, करतार सिंह सराभा, हरनाम सिंह टुण्डीलाट, भाई शिव सिंह, काला सिंह, भान सिंह, जवन्द सिंह, बीबी गुलाब कौर, अमर सिह, प्यारा सिंह लंगेरी तथा अन्य अनेक इन्कलाबी अक्सर आया करते थे तथा देश को आज़ाद करवाने की योजनाएं बनती रहती थीं ।

स. बन्ता सिंह ‘ग़दर गूंज’ अख़बार की प्रतियां बड़े गुप्त ढंग से अपनी छतरी में छुपाकर लोगों में बांट आते थे। अंग्रेज़ों को इनका ढंग कभी समझ में नहीं आया। अत्यंत खतरनाक समय में क्रान्तिकारी साहित्य बांटना और प्रचार करना बड़ा जोखिम भरा काम था परन्तु स. बन्ता सिंह संघ्वाल ने बड़ी फुर्ती और दलेरी से इसे कर दिखाया । इनके अनथक प्रयत्नों से प्रभावित होकर अनेक योद्धा इनके साथ देश के लिए मर मिटने को तैयार हो गए। इनके गांव संघवाल के निवासी शहीद अरूड़ सिंह हंसते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए, स. बन्ता सिंह ने उम्रकैद काटी, भाई गुपाल सिह, दीवान सिंह, बिशन सिंह और भाई लब्भू ने कई वर्ष जेल की सजा काटी ।

स. बन्ता सिंह ने अपने घर में प्रैस लगाई, गांव में पंचायत बनाई, स्कूल खोला, पशुओं का अस्पताल बनवाया तथा लाईब्रेरी आरम्भ करवाई। क्षेत्र के लोगों के दिलों में इस कुर्बानी के पुंज के लिए विशेष स्थान बन चका था तथा लोग इनके विचारों की बहुत कदर करते थे। अपने अनेक साथियों के सहयोग से उन्होंने ग़दर लहर को और अधिक तेज़ किया। वे गदर लहर के सक्रिय नेता थे। उनकी कारगुजारियों के बारे में सुनकर पुलिस भी कांप जाती थी ।

चांद’ के फांसी विशेषांक में लिखा गया था : “ जिस तरह जितेन्द्र नाथ मुखर्जी को ‘Terror of Bengal Police कहा जाता था उसी तरह स. बन्ता सिंह संघवाल को Terror of Punjab Police’ कहा जाता था । “ उनकी गिरफ्तारी के लिए दो मुरब्बे और दो हज़ार रुपए का इनाम रखा गया था। अंग्रेज़ सरकार द्वारा इनके पिता साहूकार बूटा सिंह, पत्नी बीबी धन्त कौर, भाई सन्ता सिंह, जवन्द सिंह, बन्ता सिंह तनूली, बेटे बख्शीश सिंह, अजीत सिंह तथा अन्य पारिवारिक सदस्यों को कठोर यात्राएं दी गईं। इनकी सारी निजी सम्पत्ति कुर्क कर दी गई परन्तु फिर भी इस परिवार का देश की आज़ादी के प्रति जनून कम नहीं हुआ। इनका योगदान बेमिसाल रहा है ।

स. बन्ता सिंह पर तीन मुकद्दमे चलाए गए। दो मुकद्दमों में फांसी और एक में उम्र कैद की सजा सुनाई गई। इतिहास इस बात का साक्षी है कि गिरफ्तारी से लेकर फांसी तक इस शूरवीर योद्धा का देश पर कुर्बान होने की खुशी में दस पौंड भार बढ़ गया। अन्ततः 12 अगस्त 1915 को इस महान देशभक्त ने 25 वर्ष की आयु में हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया । भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने 50 एकड़ जमीन तथा पाँच हज़ार रुपए इस शहीद के परिवार को देने की पेशकश की। परन्तु उन्होंने कहा, शहीद सु. बन्ता सिंह संघवाल तो सारे देश के हैं, केवल हमारे परिवार के नहीं हैं। यह ज़मीन तथा रुपए देश की ग़रीब जनता में बाँट दिए जाएं, जिनकी खुशहाली के लिए स. बन्ता सिंह शहीद हुए ।

इनके परिवार द्वारा इनकी स्मृति में शहीद बन्ता सिंह वैलफेयर ट्रस्ट बनाया गया है जो जनता अस्पताल, जालन्धर के संस्थापक डॉ. जी. एस. गिल, जरनल सैक्रेटरी डॉ. जसबीर कौर गिल की अध्यक्षता में देश-भक्तों को समर्पित अनेक समाज हितकारी योजनाओं पर काम कर रहा है । इनके द्वारा पठानकोट चौक, जालन्धर में स. बन्ता सिंह संघवाल का बुत्त लगवाया गया है, जिसमें शहीद ऊधम सिंह वैलफेयर ट्रस्ट, बर्मिंघम का विशिष्ट योगदान रहा है। इस चौक का नाम ‘ग़दरी बाबे चौंक और ‘ग़दरी बाबे मार्ग’ रखा गया है। गांव संघवाल में शहीद बन्ता सिंह, शहीद अरूड़ सिंह संघवाल स्टेडियम बनवाया गया है, जहां हर वर्ष देशभक्तों की याद में कबड्डी टूर्नामेंट करवाया जाता है । इसी संस्था द्वारा महान गदरी बाबे मैमोरियल गेट बनवाया गया है । प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को शहीद बन्ता सिंह संघवाल का शहीदी दिवस मनाया जाता है ।


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